एक कहावत है कि आप अपना नज़रिया बदले, बहुत सी चीजें अपने आप बदल जाएगी। इन्ही विचारों पर आधारित है आज की यह प्रेरक कहानी।
एक बार एक बौद्ध भिक्षु अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे पर अवस्थित एक गाँव मे ठहरे हुए थे। प्रातः काल मे सब स्नान हेतू गंगा तट पर पहुँचे। तभी उधर से एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने भिक्षु से पूछा, महाराज इस गाँव में कैसे लोग बसते हैं ? दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और बसना चाहता हूँ इसलिए मैं आपसे यह सवाल कर रहा हूँ।
इस पर बौद्ध भिक्षु ने पूछा, जहाँ तुम अभी रहते हो वहाँ किस प्रकार के लोग रहते हैं ? इस पर उस राहगीर ने कहा- मत पूछिए महाराज, वहाँ तो एक से बढ़कर एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं। इसलिए तो मैं वह गाँव छोड़ना चाहता हूँ। यह सुनकर वे भिक्षु बोले। इस गाँव में भी तुम्हे वैसे ही लोग मिलेंगे। यहाँ भी कपटी दुष्ट और बुरे लोग ही बसते हैं। यह सुनकर वह राहगीर अच्छे गाँव की तलाश में आगे बढ़ गया।
कुछ समय के बाद एक दूसरा राहगीर वहाँ से गुजरा। उसने भी बौद्ध भिक्षु से वही प्रश्न किया। मुझे किसी नए जगह में बसना है। क्या आप बतायेगें कि इस गाँव के लोग कैसे हैं ?
इस पर बौद्ध भिक्षु ने वही प्रश्न किया। जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहाँ किस तरह के लोग बसते हैं ?
इस पर वह राहगीर बोला- जी, वहाँ तो सब सभ्य, सुलझे और अच्छे विचार वाले लोग बसते हैं।
यह सुनकर वह भिक्षु बोला यहाँ भी तुम्हें बिल्कुल वैसे ही लोग मिलेंगे-सभ्य, सुलझे और अच्छे विचार वाले लोग।
बौद्ध भिक्षु तो अपनी बातें पूरी कर अपने दैनिक कामों में लग गया, पर उनके शिष्य जो यह सब सुन रहे थे बड़े आश्चर्यचकित थे। राहगीर के जाते ही उन्होंने अपने गुरु से प्रश्न किया- गुरुदेव क्षमा करें, क्या आप बताएंगे कि एक ही गाँव के बारे में आपने दोनों राहगीरों को अलग-अलग बातें क्यों बताई ?
इस पर भिक्षु ने गंभीरता से कहा- शिष्यों, आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं देखते जैसा कि वह है बल्कि हम उनको वैसे देखते हैं जैसा कि हम खुद हैं। हर जगह हर प्रकार के लोग रहते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं। अक्सर इंसान दूसरे को उसी नजरिए से देखता है जैसा कि वो खुद है। उस पहले राहगीर को अपने सभी गाँव वाले कपटी, दुष्ट और बुरे स्वभाव वाले लग रहे थे, क्योंकि वह खुद अंदर से कपटी दुष्ट और बुरी सोच वाला इंसान था। जबकि दूसरे राहगीर को गाँव वाले सभ्य, सुलझे और अच्छे विचारों वाले लगे क्योंकि वह खुद सभ्य अच्छे और सुलझे विचारों वाला इंसान था।
वह भिक्षु कुछ देर चुप रहा फिर बोला, मेरी एक बात हमेशा याद रखना। हमें अपने आसपास की चीजें वैसे ही दिखती है जैसा कि हम खुद होते हैं। अतः हमें बाहरी चीजों को नहीं खुद के नजरिए को बदलने की जरूरत होती है। वहाँ उपस्थित शिष्य गण अपने गुरु की बातें समझ चुके थे। आगे से उनसबो ने सिर्फ अच्छाइयों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया।
किशोरी रमण
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सही दृष्टिकोण की शिक्षा
very nice....
बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद कहानी |