आज "धरती आबा" यानी पृथ्वी के पिता के नाम से प्रसिद्ध आदिवासी समाज के नायक एवं भगवान तुल्य बिरसा मुंडा की जन्म जयन्ती है जिसे जनजातीय गौरब दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
इस शुभ अवसर पर उलगुलान के नायक को शत शत नमन।
भारत के इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे आदिवासी नायक हैं जिन्होंने अपनी प्रकृति, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजो से लड़ाई लड़ी और आदिवासी बिद्रोह का नेतृत्व किया। उनका ये संघर्ष और क्रांतिकारी विचार आगे चलकर आजादी की लड़ाई में नई ऊर्जा का संचार किया।
विरसा मुंडा का का जन्म 15 नवम्बर 1875 को राँची जिले के उलिहातू गाँव मे हुआ था।
सन 1895 से सन 1900 तक विरसा मुंडा का विद्रोह यानी उलगुलान चला। उस समय अंग्रेजो एवं बाहरी साहूकारों द्वारा आदिवासियों को लगातार जल, जंगल और जमीन से और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जा रहा था। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई।उनका ये आन्दोलन मात्र बिद्रोह नही था बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, स्वायत्तता और संस्कृति बचाने का महा संग्राम था। उन्होंने आदिवासी जनजीवन के कल्याण एवं उत्थान के लिए झारखंड, बिहार और ओडिशा में जननायक और समाज सुधारक की पहचान बनाई। आदिवासी संस्कृति एवं राष्ट्रीय आंदोलन में उनके अमुल्य योगदान के लिए न केवल आदिवासी समाज बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति सदा उनका ऋणी रहेगा।
आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार किया और दो साल की कारावास की सजा सुनाई। जेल से छूटने के बाद वे भूमिगत हो कर आंदोलन का नेतृत्व करते रहे। 03 जनवरी 1900 को उन्हें धोखे से गिरफ्तार किया गया और जेल में उन्हें अमानवीय शारीरिक कष्ट पहुँचाया गया जिससे 9 जुलाई 1900 को उनकी मृत्यु हो गई।
आज भले ही वे हमारे बीच नही है पर लोकमानस, लोकगीतों एवं जनजातीय साहित्य में वे आज भी जिंदा हैं। उनकी जन्म जयन्ती मनाना तभी सार्थक होगा जब हम उन्हें केवल पूजे नही बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन का हिस्सा बनाये तथा उनके बताए गए रास्तों पर चले। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
किशोरी रमण
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आदिवासी समाज के भाग्य विधाता बिरसा मुंडा जी को शत शत नमन।
Very nice.
बिरसा मुंडा को हार्दिक श्रद्धांजलि ।