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Writer's pictureKishori Raman

कविता - किसी अजनबी की तलाश




ताउम्र मुझे रही किसी अजनबी की तलाश

चलते रहे दिल मे लिए उन्हें पाने की आस

उनकी हँसी रही मेरे साथ उम्मीदें बन कर

प्यार के सपने कराते रहे प्यार का अहसास।


क्या हुआ जो वो मेरी हमसफ़र न बन सकी

मीत बन कानो मे आई लब यू न कह सकी

मुझे देखकर कभी वो मुस्कुराई थी एक बार

याद कर उसी को मेरी हसरतें जिंदा रह सकी।


उनकी तम्मन्ना ही रही शेष और कुछ न रहा

खामोश ही रहा जिंदगी भर कुछ न कहा

लोग मेरी इस चाहत को चाहें कुछ नाम दे

जब वो ही न रही तो फिर मैं भी न रहा।


क्यों बताऊ आपको कि रब ने क्या दिया

जितना लिखा था किश्मत में उतना ही दिया

जब बदल नही सकते हम भाग्य की लकीरों को

जो भी मिला उसके लिए कहना है शुक्रिया।



किशोरी रमण



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73 views3 comments

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3 opmerkingen


Onbekend lid
20 dec. 2021

Bahut hi Sundar....

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kumarinutan4392
kumarinutan4392
12 dec. 2021

Very nice.....

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sah47730
sah47730
10 dec. 2021

सुन्दर रचना।

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