इंग्लैंड के एक पुस्तकालय में एक नौजवान एकाग्रचित्त होकर अपने अध्ययन में लीन था। अन्य पाठक- गण पहले ही एक एक कर जा चुके थे और पुस्तकालय सुनसान नजर आ रहा था। चपरासी उकताया हुआ बार बार अपनी घड़ी देख रहा था। अन्त में जब उसके धैर्य का बांध टूट गया तो वह नौजवान के पास आकर धीरे से बोला " साहब, सब चले गये और पुस्तकालय बंद करने का समय हो गया है°
नौजवान मानो नींद से जागा हो। उसने जल्दी-जल्दी अपनी किताबें और कॉपियां समेटी और पुस्तकालय से बाहर निकल गया। वह पुस्तकालय से 10 मील दूर अपने निवास स्थान की ओर चल पड़ा। रोज 20 मील पैदल चलकर 10- 12 घंटा रोज अध्ययन करने वाला यह नौजवान जब बैरिस्टरी की परीक्षा में बैठा तो उसे सारे ब्रिटिश साम्राज्य से बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड आने वालों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। जानते हैं वो नौजवान कौन था ? वह थे अदम्य,अजेय प्रवृत्ति के सच्चे साहसी और सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति सरदार वल्लभ भाई पटेल जो आगे चलकर अपने पुरुषार्थ ,परिश्रम, प्रतिभा तथा चरित्र बल के सहारे भारत के महान नेता, निर्माता और राजनीति के पुरोधा बने और विश्व में लौह पुरुष के नाम से भी विख्यात हुए।
31 अक्टूबर 1875 को पैदा होने वाले ये अमर सेनानी बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। चाहे पढ़ाई हो या खेल का मैदान या सामाजिक कार्य वह हमेशा आगे रहते थे। पिता श्री झाबेर भाई पटेल खुद भी अट्ठारह सौ सत्तावन के महान योद्धा थे और जिन्होंने महारानी लक्ष्मी बाई के साथ मिलकर अंग्रेजों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया था। स्वाध्याय के बल पर ही उन्होंने सन 1900 ईस्वी में वकालत की परीक्षा पास की और उसके बाद बैरिस्टर बनने के लिए विलायत गए। वहाँ अपने परिश्रम एवं विलक्षण प्रतिभा के बलबूते पर सभी परीक्षाओं में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त किया। भारत लौटकर उन्होंने वकालत शुरू की और कुछ ही दिनों में चारों तरफ अपनी योग्यता की धाक जमा दी। इसी समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से अहमदाबाद आये। शुरू में तो बल्लभ भाई गांधी जी के विचारों एवं क्रियाकलापों की तरफ ध्यान नहीं दिया पर कालांतर में उनके विचारों से प्रभावित हो उनके आंदोलनों में शरीक होने लगे,और फिर तो वह जन सेवा और राष्ट्र सेवा में इतने तल्लीन हुए कि वकालत छोड़कर देश सेवा में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।
बल्लभ भाई किसान थे,जन्मजात किसान । उन्होंने देश के कृषकों एवं मेहनतकश वर्ग को स्वाभिमान के साथ खड़ा करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की। बारडोली के विश्वविख्यात किसान आंदोलन में अपने कुशल नेतृत्व एवं अद्भुत संगठन शक्ति से इन्होंने वो गुल खिलाए कि अंग्रेजों के भी छक्के छूट गए। उनकी सफलता से प्रभावित होकर गांधी जी ने उन्हें सरदार की उपाधि से विभूषित किया तब से वे संपूर्ण राष्ट्र के सरदार हो गए।
सन 1931 में कांग्रेस के कराँची अधिवेशन में इन्हें राष्ट्रपति पद के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया गया। यह वही साल था जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी और बटुकेश्वर दत्त को काले पानी की सजा हुई थी। कानपुर के दंगे में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे देशभक्त की हत्या की गई थी। इन संकट की घड़ियों में जन मानस को संतुलित बनाये रखना सरदार जी के ही बूते की बात थी। स्वराज्य प्राप्ति के बाद उत्पन्न अनेक जटिल समस्याओं को सुलझाने में सरदार ने जिस अद्भुत क्षमता एवं पटुता-प्रवीणता का परिचय दिया वह उनके अजेय शक्ति और सामर्थ्य का द्योतक है। आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गए पर अपने कुटिल नीति के कारण 562 स्वतंत्र रियासतों को सांप बनाकर लोकतंत्र को डसने के लिए छोड़ गए। ऐसा लगा कि हमारा गणतंत्र ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाएगा पर वाह रे पटेल। उन्होंने अपनी अद्भुत संगठन क्षमता के बलबूते सारे देसी रियासतों का विलय भारत में कर एक बृहद भारत का निर्माण किया। जो काम चंद्रगुप्त,अशोक और विक्रमादित्य नही कर पाए उसे करने में ये सफल रहे और सारे भारत को एक मानचित्र पर लाकर खड़ा कर दिया।
देश की विभिन्न समस्याओं को सुलझा देने की क्षमता यदि किसी भारतीय राजनेता को मिली थी तो वह केवल सरदार पटेल ही थे। नागपुर झंडा सत्याग्रह की सफलता, खेड़ा,बोरसद और बारडोली के किसानों की समस्याओं का समाधान,केंद्र और राज्यों में शासन सत्ता को मजबूती प्रदान करना, आजाद हिंद फौज के सैनिकों की समस्याओं का समाधान ,नौसेना की विद्रोहअग्नि का शमन, देसी राज्यों के विकट समस्याओं का समाधान, मजदूर संगठनों के समस्याओं का हल, राज्यों का नियंत्रण, कांग्रेस का सुव्यवस्थित संगठन संचालन आदि दुसाध्य कार्यों का सुलभ संपादन सरदार के ही शक्ति सामर्थ्य और बल-पौरुष की बात थी।
आज हम उनकी जयंती पर उन्हें याद करते है और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते है । आपको शत- शत नमन।
किशोरी रमण
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Very nice ......
शत शत नमन