आज के इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में दुख और परेशानियों के कारण हमारे दिमाग मे उथल पुथल मचा रहता है। और अक्सर ही जल्दीबाजी में हम गलत निर्णय ले लेते है। कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने दिमाग को शांत रखे तथा धैर्य के साथ बैठे तो हमारे दिमाग की उथल पुथल भी पानी के कीचड़ की तरह बैठ जाती है और विचार स्वच्छ हो जाते है। तब हम जो भी निर्णय लेते हैं वह सही होता है। बुरे समय मे इंसान को धीरज नही खोना चाहिए। इस संदर्भ भगवान बुद्ध के उपदेश प्रासंगिक हैं।
एक बार की बात कि एक किसान अपनी गरीबी से बहुत परेशान था। गरीबी इतनी ज्यादा थी कि वह अपने परिवार का भरण पोषण भी ठीक ढंग से नही कर पा रहा था। गरीबी और लाचारी से वह आजिज आ चुका था।उसके दिमाग मे उथल पुथल मची रहती थी। अंत मे वह घर छोड़ कर भागने का निर्णय करता है और एक रात वह अपने परिवार को छोड़ घर से निकल जाता है। वह बस चलता जाता है। उसे पता नही होता है कि वह कहाँ जा रहा है। चलते चलते वह एक जंगल मे पहुंचता है। वह थक कर चूर होता है और आराम करने की सोचता है तभी उसे एक विशाल बृक्ष दिखाई पड़ता है। वह उस बृक्ष की ओर बढ़ जाता है। उस बृक्ष के पास जाने पर वह देखता है कि भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे है। वह किसान भी उपदेश सुनने लगता है । उपदेश सुनने के बाद वह प्रभावित होकर भगवान बुद्ध के पास आता है और उनसे कहता है -- कृपा कर मुझे भी अपना शिष्य बना लें। बुद्ध ने उसे देखा और बोले ठीक है तुम भी इस कारवाँ में शामिल हो जाओ।
दूसरे दिन जब बुद्ध का काफिला आगे बढ़ा तो वह किसान भी उन सबो के साथ चल दिया। काफी तेज गर्मी थी फिर भी बुद्ध का काफिला आगे बढ़ता जा रहा था। चलते चलते घने जंगल मे एक बड़ा बृक्ष मिला। बुद्ध ने उसी पेड़ के नीचे आराम करने की सोची। सब लोग उस घने पेड़ की छाया में आराम करने लगे। बुद्ध को प्यास लग रही थी। उन्होंने किसान से कहा, पास में ही एक सरोवर है। तुम वहाँ से मेरे लिए पीने का पानी ले आओ।
किसान सरोबर की ओर चल पड़ा। आगे जाने पर उसे सरोबर मिला जिसमे बहुत सारे जानवर उछल कूद मचा रहे थे। किसान को आता देख सारे जानवर भाग गये। उछल कूद के कारण सरोबर के नीचे का कीचड़ और सड़े गले पत्ते सतह पर आ गया था और पानी गंदा हो गया था । किसान ने सोचा कि इतना गंदा पानी बुद्ध कैसे पी पायेगें अतः वह बिना पानी लिए वापस लौट आया और सारी बाते बुद्ध को बताया। बुद्ध ने कुछ देर बाद फिर किसान को पानी लाने के लिये सरोबर के पास भेजा। इस बार जब वह किसान सरोबर के पास पहुँचा तो चकित रह गया। उसने देखा कि पानी साफ है। उसने सरोबर से पानी लिया और बुद्ध के पास वापस आया।
बुद्ध ने उस किसान से कहा, जब जानवर उस सरोबर में उछल कूद कर रहे थे तो कीचड़ ऊपर आ गया था जिससे पानी गंदा हो गया था। कुछ देर शांत रहने पर कीचड़ नीचे बैठ गया औऱ पानी फिर स्वच्छ हो गया। यही हमारे मन के साथ भी होता है । जब मन और दिमाग अशांत रहता है तो जल्दीबाजी में हम गलत निर्णय ले लेते हैं।
भगवान बुद्ध की यह सिख उस किसान को समझ मे आ गई। वह धीरज के साथ सोचता है तो उसे अहसास होता है कि उसने घर छोड़ कर गलत किया है। उसकी अनुपस्थिति में उसके पत्नी और बच्चों को परेशानी का सामना करना पडेगा। उसने बुद्ध से आज्ञा ली और वापस लौट गया।
किशोरी रमण।
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Bahut hi Sundar kahani hai...
बिल्कुल सही कहा । समस्या समाधान से पहले समस्या को शांत दिमाग से समझना चाहिये ।
सुन्दर प्रस्तुति।