एक बड़ा धनवान व्यक्ति था। उसके पास इतना धन तो था ही कि उसका परिवार उस धन से बड़े मजे से जीवन बिता सकता था। फिर भी वह चिंतित रहता था। वह इतना धन कमा लेना चाहता था ताकी उसकी आने वाली सात पीढ़ियाँ बिना कमाए ही सुख पूर्वक रह सके। वह ज्यादा धन कमाने में लग जाता है। लेकिन काफी समय और मेहनत लगाने के बाद भी वह इतना पैसा जमा नही कर पाता। इसके बाद तो वह बहुत परेशान रहने लगता है। तभी वह अपनी परेशानी दूर करने के लिए गौतम बुद्ध के पास जाता है और अपनी समस्या उन्हे बताता है।
बुद्ध उसकी बातें सुनकर कहते है- ठीक है, मैं तुम्हे इस परेशानी का हल बताता हूँ। वे कहते हैं कि तुम्हारे घर से थोड़ी दूर एक झोपड़ी है। तुम उस झोपड़ी में जाओ। वहाँ एक बूढ़ी माता अपनी बहू के साथ रहती है। तुम्हे उन्हें एक दिन के खाने का सामान देना है। जैसे ही वो तुम्हारे सामान को स्वीकार कर लेगी, तुम्हारी समस्या खत्म हो जाएगी।
इतना सुनने के बाद वह व्यक्ति अपने साथ खाने का सामान लेकर उस बूढ़ी माता के झोपड़ी में जाता है। वहाँ वह झोपड़ी में बूढ़ी माता और उसकी बहू को पाता है। वह आदमी बूढ़ी माता को बताता है कि वह उनलोगों के लिए खाने का सामान लेकर आया है और उनसे सामान लेने का आग्रह करता है।
बूढ़ी माता कहती है, धन्यवाद बेटा, पर मै ये सामान नही ले सकती। वह धनवान ब्यक्ति आश्चर्य में पड़ जाता है और इसका कारण पूछता है। इसपर वह बूढ़ी माता बताती है कि आज हमारे खाने का इंतजाम हो चुका है और हम कभी भी कल के खाने के बारे में आज नही सोचते। उस धनी व्यक्ति को उस बूढ़ी माता की बातें बड़ी अजीब लगती है। वह फिर से उन सामानों को लेने का आग्रह करता है पर वह बूढ़ी माता फिर से उसके इस प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा देती है कि हमारे खाने का इंतजाम ऊपर वाला करता है। अगर उसने आज हमें खाने के लिए दिया है तो कल भी अवश्य देगा। इसके बाद वह धनी व्यक्ति समझ जाता है कि मै जो परेशानी लेकर चल रहा हूँ वह ब्यर्थ की परेशानी है। जब कल क्या होगा यह हमारे हाथ मे है ही नही तो क्यों ब्यर्थ में हम कल के बारे मे चिन्ता करें। हमारे हाथ मे केवल वर्तमान है। हमे बस इसे सुधारने के बारे मे विचार करना चाहिए न कि ये सोचने मे की कल क्या होगा।
उस धनी ब्यक्ति की आँखे खुल जाती है और वह बुद्ध को नमन कर अपने घर लौट जाता है।
किशोरी रमण
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बहुत सुंदर और प्रेरणादायक कहानी।