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Writer's pictureKishori Raman

# एक निवेदन -त्योहारों में खुशी बाँटिये #



अभी पर्व-त्योहारों का सीजन चल रहा है। दुर्गा पूजा समाप्त हुआ है और अब आगे दिवाली आने वाली है। उसके बाद बिहार का महापर्व छठ आएगा और फिर दिसंबर में क्रिसमस की धूम रहेगी। पर्व - त्योहार हमें खुशियां मनाने का अवसर देते हैं। घर, परिवार ,समाज सब एकजुट हो पर्व मनाते हैं और एक दूसरे को खुशियां बांटते हैं। शहरों में त्योहारों का मतलब होता है जमकर खरीदारी करना, अपने लोगों को उपहार देना और मस्ती करना पर गाँव की स्थिति थोड़ी भिन्न होती है। गाँव में धार्मिक पर्व या आयोजन गाँव वालों के लिये मौज मस्ती से ज्यादा उनके आर्थिक गतिविधियों एवं रोजी-रोटी के सवाल से जुड़े होते हैं। ग्रामीण शिल्पकारों एवं कलाकारों को ये सब त्यौहार एवं आयोजन उनकी कमाई के अवसर उपलब्ध कराते हैं। इसकी तैयारी वह बहुत पहले से ही शुरु कर देते है। अब छठ महापर्व को ही लें। छठ पूजा में लगने वाले अधिकांश सामान जैसे प्रसाद, फल- फूल, पूजा के सामान सब हमारे खेतों, बगीचों एवं ग्रामीण कारीगरों द्वारा ही उपलब्ध कराए जाते हैं। मिट्टी का चूल्हा हो,बाँस से बना टोकरी या सूप हो, प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन हो,लकड़ी हो,फूल हो, सब ग्रामीण कारीगरों द्वारा ही उपलब्ध कराए जाते हैं और इसी बहाने उनकी कमाई भी हो जाती है। इस तरह से हम पाते हैं कि हमारे पूर्बजों ने गावो में इन त्योहारों की परिकल्पना इस तरह से की थी कि ग्रामीण शिल्पकारों एवं कुटीर उद्योगों के उत्पादों के बिना कोई भी अनुष्ठान सफल नहीं हो सकता था। हालाँकि अब पूंजीवादी एवं बाजारवादी व्यवस्था के कारण स्थितियां काफी बदल गई हैं। अब इन त्योहारों में सस्ते तथा मशीनों से बने उत्पादों ने अपना सिक्का जमा लिया है जिसका परिणाम यह हुआ है कि हमारे लाखों ग्रामीण कलाकारों एवं कुटीर-धंधों से जुड़े लोग भुखमरी की स्थिति में आ गए हैं। उनके लिए अब ये पर्व- त्यौहार उनकी कमाई के साधन नही रहे अतःउनके लिये महत्वहीन होते जा रहे हैं। क्या हम उनके जीवन में इन त्योहारों के बदौलत फिर से खुशियां ला सकते हैं ? उनके चेहरों पर फिर से मुस्कान ला सकते हैं ? अगर हां, तो किस तरह ? ये विकट प्रश्न है। पर यह संभव है कि हम अपने प्रयासों से उनके चेहरे पर वापस मुस्कान ले आए और इसके लिए हम इन त्योहारों में हाँथ से या फिर कुटीर उद्योगों द्वारा बने उत्पादों का ही प्रयोग करे जो पर्यावरण के लिहाज से भी उत्तम रहेगा। तो आइए, इस दिवाली में हम सब मिट्टी के दीए जलाए। पूजा कक्ष में रखने के लिए या घर की सजावट के लिए अपने गांव के मूर्तिकारों द्वारा बनाए गये मूर्तियों को लगाएं।अपने शिल्पकारों के बनाए उत्पादों का ही प्रयोग करें। अगर यह कुछ महँगे भी हुए तो भी खरीदें, क्योंकि यह न सिर्फ हमारे घरों को सुंदर बनाएंगे बल्कि हमारे पर्यावरण को भी स्वच्छ रखेंगे। और सबसे बड़ी बात कि इसी बहाने लाखों गरीबों,मेहनतकशो की जेब में कुछ पैसे भी जाएंगे और उनका त्यौहार भी खुशियों से भर जायेगा। आपका ये उत्तम सोंच ना सिर्फ दूसरों के जीवन को रोशन करेगा बल्कि आपके जीवन को भी गर्व की अनुभूति एवं दूसरों की मदद करने के एहसास की खुशी से भर देगा किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media .link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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4 Kommentare


anandshekhar06
anandshekhar06
30. Okt. 2021

Very

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sah47730
sah47730
28. Okt. 2021

हमारे त्योहार युगों से चलीआ रही हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हम जितने परम्परागत ढ़ंग से मनाएंगे हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उतना ही बल मिलेगा और उसमें सुदृढ़ता आयेगी। खासकर होली और दिवाली में हम विदेशी उत्पादों के प्रति आकर्षित होकर अपने देश कीअर्थब्यवस्था का नुकसान करने लगे हैं। हमें ऐसे अवसर पर स्वदेशी चीजों को अपनाकर सजग नागरिक होने का परिचय देना चाहिए।

:-- मोहन"मधुर"

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verma.vkv
verma.vkv
28. Okt. 2021

बिल्कुल सही लिखा है, हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए।

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Unknown member
28. Okt. 2021

Very nice......

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