" कोई ग़ज़ल कहता है "
मैं जब अपनी आँखे बंद करता हूँ
खुद को उनके करीब पाता हूँ
खो जाता हूँ उनके हसीन सपनो में
जहाँ वो जाती है वहीं मैं जाता हूँ
मन जब उन्हें पाकर बिभोर होता है
और उनके रस से सराबोर होता है
ज़िंदगी की फ़ांस सुलझ जाती है
हर कदम जिंदगी की ओर होता है
जब दुल्हन की तरह वो सॅवरती है
मेरे मन मे घंटियाँ सी बजती है
ये गेसुओं की महक, ये कायनात
मुझे सब परी कथा सी लगती है
मेरे होठों पे कुछ मचलने लगता है
मेरे अंदर कोई उतरने लगता है
सुनता हूँ किसी की फुस-फुसाहटें
और कोई कहानी कहने लगता है
जब चंचल मन कुछ शब्द गढ़ता है
पन्नों पर किसी का अक्स उभरता है
तब सृजन का चक्र पूरा होता है
कोई उसे गीत, कोई गजल कहता है
किशोरी रमण
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Very nice poem...
बहुत सुन्दर
Nice
वाह, बहुत सुंदर एहसास।