एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। उनके शिष्यगण बड़े ध्यान से बुद्ध को सुन रहे थे। उनमें से एक व्यक्ति दूसरे गांव का भी था। जब बुद्ध प्रवचन समाप्त कर वहाँ से जाने को हुए तो वह व्यक्ति बुद्ध के पास आकर हाथ जोड़ता है और कहता है कि मैं बगल के गाँव का एक किसान हूँ। मैं आपको अपने गांव में आने की विनती करता हूँ। कृपया आप हमारे गांव में भी आयें और हम लोगों को भी अपना उपदेश दे।
भगवान बुद्ध उससे कहते हैं कि तुम चिंता ना करो। हम सब तुम्हारे गाँव अवश्य आयेगें। यह कह कर बुद्ध और उनके शिष्य वहां से चले जाते हैं। अगले ही दिन बुद्ध और उनके शिष्यगण उस किसान के गाँव में जाते हैं। बुद्ध को देखते ही गाँव के सारे लोग बुद्ध के पास आते हैं और उन्हें वंदन कर उनसे अपने प्रश्नों का जवाब प्राप्त करते हैं। सभी किसान वहाँ आते हैं पर वह किसान वहाँ नहीं रहता है जिसने बुद्ध को निमंत्रित किया था। असल में आज ही उस किसान के दो बैल खो जाते हैं जो उसके रोजी-रोटी के साधन होते हैं। घर में बैठा हुआ किसान इस दुबिधा में फँस जाता है कि पहले वह बुद्ध के पास उनका उपदेश सुनने जाए या फिर अपने बैलों को खोजें। उसके पास दो ही विकल्प होते हैं। बहुत देर सोचने के बाद एक विकल्प चुनता है और वह अपने बैलों को ढूंढने चला जाता है। इधर बुद्ध उस किसान का इंतजार कर रहे होते हैं जिसने उन्हें बुलाया था। बहुत देर इंतजार करने के बाद बुद्ध और उनके शिष्य वहाँ से चले जाते है।
किसान बहुत मेहनत के बाद अपने दोनों बैलों को खोज पाता है लेकिन वह बुद्ध से नहीं मिलने के कारण दुखी भी होता है। अगले दिन वह किसान बुद्ध को ढूंढते हुए उनके पास पहुँच जाता है और रोने लगता है। तुम रो क्यों रहे हो ? बुद्ध पूछते हैं। इस पर वह कहता है कि मैंने ही तो अपने गाँव में आपको बुलाया था पर मैं ही आपसे मिलने न सका । बुद्ध मेरे बैल कल जंगल में खो गए थे। मेरे पास दो ही विकल्प थे, या तो मैं पहले आपको सुनने आऊँ या फिर अपने बैलों को ढूढ़ने जाऊँ। बैल मेरी रोजी-रोटी के साधन है। अगर वे नहीं मिलते तो मेरे भूखे मरने की नौबत आ सकती थी। इसलिए मैं उन्हें ढूंढने चला गया। मुझे माफ करें बुद्ध क्योंकि मैंने आपका अपमान किया है।
इस पर बुद्ध कहते हैं- यदि तुम उस समय मुझसे पूछते कि तुम्हें क्या करना चाहिए ? तो मैं भी वही कहता जो तुमने किया है। यदि तुम मेरे पास सुनने आ भी जाते तो तुम मेरा एक भी शब्द नहीं सुन पाते। तुम केवल अपने बैलों के बारे में ही सोचते। परंतु अब तुम्हारे बैल मिल गए हैं अतः तुम आराम से मेरे उपदेश को सुन सकते हो।
मैं यह जानकर खुश हूँ कि तुमने पहले कर्म को चुना है। बुद्ध की बात सुनकर किसान के मन से बोझ उतर जाता है और वह आराम से बुद्ध के उपदेशों को सुनता है।
किशोरी रमण
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very nice.....
So nice...
सही निर्णय लेने वाला ही विवेक शील प्राणी कहलाता है। हम सभी अनेक उपदेश सुनते व पढ़ते हैं। पर उन्हें जीवन में उतारने वाले बहुत ही कम ब्यक्ति होते हैं।
:-- मोहन"मधुर
बहुत सुंदर कहानी ।