दर्द क्या है ? एक अहसास ही तो है। आदमी इसी अहसास को लेकर जीता भी है और इसकी शिकायत भी करता है। अगर ये दर्द नही हो तो जिंदगी कैसी होगी सोचा है आपने कभी ? जिंदगी की तेज रफ्तार में जब अपने ही छोड़कर आगे निकल जाते हैं, जब आपके गीतों को आवाज और मंच नही मिलता और जब किसी तरह आप झुठ से बचते बचाते सच तक पहुंचते हैं तो मालूम पड़ता है कि सच भी तो इसी झूठ का दूसरा पहलू ही है। तब क्या गुजरती है दोस्ती और प्यार को खुदा समझने वालों पर ? इन्ही सब चिंताओं को स्वर देने का प्रयास है ये कविता जिसका शीर्षक है......
दर्द का अहसास मुस्कुरा कर पिया है तूने सनम जिस दर्द को उस दर्द का अहसास देखो आज कितना गहरा है कल आसुओ को निर्दयी तूने रौंद डाला पैरों से अफसोस तेरे मरने पर भी आज देखो पहरा है जिन्दगी थी इतनी तेज कि रहे देखते रफ्तार को मौत आई तो रुकी जो आज तक भी ठहरा है कैसे सुनाऊं गीत मैं टूटा हुआ सहमा हुआ ये जमाना आज बस मेरे लिए ही बहरा है झूठ से लिपटा रहा जो टुकड़ा- टुकड़ा आदमी सच से लहू-लुहान हुआ ये मेरा ही तो चेहरा है प्यार की आदत नही मुझे माफ़ करना दोस्तो तुम कहते हो कफन जिसे वह मेराही तो सेहरा है किशोरी रमण
very nice...
भावनापूर्ण गहराई भरी कविता,जो सही में गहरे दर्द का एहसास कराती है।
अच्छी प्रस्तुती।
:--मोहन"