अक्सर हम लोगों को यह कहते हुए सुनते है कि हम तो गरीब और छोटे लोग हैं, भला हम देश या समाज की क्या मदद कर सकते हैं ? जबकि हर एक व्यक्ति इसमें अपना योगदान दे सकता है। हाँ, योगदान का स्वरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। किसी के द्वारा किया गया शुभ कार्य चाहे कितना भी छोटा हो उसका भी अपना महत्व है। अगर यही छोटे-छोटे शुभ कार्य समाज के बड़े हिस्से के द्वारा किया जाए तो बड़ा शुभ कार्य संपन्न हो जाता है,और यही बदलाव का कारण बनता है | इस सम्बंध में भगवान बुद्ध के उपदेशों से सम्बंधित एक कथा प्रस्तुत है।
किसी नगर में एक अमीर आदमी रहता था। उसका नाम बिलाल था। वह बहुत स्वार्थी था और सदाचार के कार्यों से कोसों दूर रहता था। उसका एक पड़ोसी जो था तो गरीब पर परोपकारी व्यक्ति था। एक बार पड़ोसी ने भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया। पड़ोसी ने सोचा कि इस अवसर पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को भोजन कराना चाहिए। ऐसा संकल्प के साथ पड़ोसी एक बड़े भोज की तैयारी करने के लिए नगर के सभी व्यक्तियों से दान की अपेक्षा की एवं उन्हें अपने यहाँ भोजन के लिए भी आमंत्रित किया। पड़ोसी ने बिलाल को भी न्योता दिया। भोज के एक-दो दिन पहले पड़ोसी ने चारों ओर घूम घूम कर धन एकत्रित किया। जिनकी जैसी सामर्थ थी उन्होंने वैसा ही दान दिया। जब बिलाल पड़ोसी को घर घर जाकर दान की याचना करते देखा तो मन ही मन सोचा। इस आदमी से खुद का पेट तो पालते बनता नहीं फिर भी इतने बड़े भिक्षु संघ और नगर के लोगों को आमंत्रित कर लिया है। इसीलिए इसे घर-घर जाकर भिक्षा मांगनी पड़ रही है। यह मेरे घर पर भी याचना करने के लिए आता ही होगा। जब पड़ोसी बिलाल के पास दान मांगने के लिए आया तो बिलाल ने पड़ोसी को थोड़ा सा नमक, शहद और घी दिया।
पड़ोसी ने खुशी खुशी बिलाल से दान ग्रहण किया। लेकिन उसे अन्य व्यक्तियों के दान में नहीं मिलाया बल्कि उसे अलग से रख दिया। बिलाल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके दान को अन्य लोगो के दान से अलग क्यों रखा गया है ? उसे लगा कि पड़ोसी ने सभी लोगों के सामने उसे बेइज्जत करने के लिए ऐसा किया है ताकि सभी यह देख सके कि इतने धनी व्यक्ति ने इतना तुच्छ दान दिया है। बिलाल ने अपने एक नौकर को पड़ोसी के घर जाकर इस बात का पता लगाने के लिए भेजा। नौकर ने लौटकर बताया कि पड़ोसी ने बिलाल के दान सामग्री को थोड़ा थोड़ा सा लेकर चावल, सब्जी और खीर आदि में मिला दिया है। यह जानकर भी बिलाल के मन से जिज्ञासा नहीं गयी और उसे अभी भी पड़ोसी की नियत पर संदेह था। भोज के दिन वह प्रातः अपने वस्त्रों के अंदर एक कटार छुपा कर ले गया ताकि पड़ोसी द्वारा उसे लज्जित किए जाने पर उसे मार डाले।
पर वहां जाने पर उसने पड़ोसी को भगवान बुद्ध से यह कहते सुना। भगवान, इस भोज के लिए जो भी धन का संग्रह किया गया है वह मैंने नगर के सभी निवासियों से दान में प्राप्त किया है। कम हो या अधिक, सबो ने पूरी श्रद्धा और उदारता से दान दिया है। अतः सभी के दान का मूल्य समान है। पड़ोसी के मुंह से यह सुनकर बिलाल को अपने विचारों की तुच्छता का बोध हुआ। उसने अपनी गलती के लिए सभी के समक्ष अपने पड़ोसी से क्षमा माँगी। बिलाल के पश्यताप के शब्दों को सुनकर बुद्ध ने वहाँ उपस्थित सभी व्यक्तियों से कहा, तुम्हारे द्वारा किया शुभ कर्म भले ही कितना भी तुच्छ हो पर उसे छोटा मत जानो। छोटे-छोटे शुभ कर्म ही एकत्रित होकर भविष्य में विशाल रूप धारण कर लेते हैं।
इसलिए दोस्तों, छोटा ही सही पर समाज के विकास और भलाई में हमारी भी थोड़ी भागीदारी होनी चाहिए। क्योंकि इसी छोटे-छोटे सहयोग से बड़े-बड़े काम बन जाते हैं। इसी सहयोग की भावना से चारों ओर बदलाव आता है जो समाज और संसार को प्रगति व उत्थान के मार्ग की ओर ले जाता है।
किशोरी रमण
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Very nice....