अक्सर हम अपने दुखों की वजह दुसरो को मानते हैं जबकि कई बार ऐसा होता है कि हमें कोई दूसरा दुख नही पहुँचाता बल्कि हम अपने दुखों की वजह खुद ही बन जाते हैं। हमें इस स्थिति से खुद को बचाना चाहिए क्योंकि इस तरह से तो हम खुद को ही परेशान करते है।आज प्रस्तुत है एक छोटी सी कहानी जो हमे अपने दुखों की वजह खुद न बनने की शिक्षा देती है।
एक बार गौतम बुद्ध नगर का भ्रमण कर रहे थे। उन्हें पता चला कि उस नगर में रहने वाले कुछ बुद्ध विरोधियों ने आम नागरिकों के मन मे यह बात बैठा दी है कि गौतम बुद्ध एक ढोंगी ब्यक्ति है और वे उन सबो के धर्म को भ्रष्ट कर रहें हैं। इसी वजह से उस नगर में रहने वाले लोग बुद्ध को अपना दुश्मन मानते थे।
बुद्ध ने देखा कि एक स्थान पर काफी लोग खड़े है। जब वे उस स्थान पर पहुँचे तो पाया कि वे सब उनके बारे में ही चर्चा कर रहे है और उन्हें काफी बुरा भला कह रहे है, उन्हें उलाहना दे रहें है। बुद्ध वहीं एक कोने में खड़े होकर शांति भाव से उनकी बाते सुनते रहे। इस दौरान उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नही दी। कुछ देर बाद जब नगरवासी बुद्ध को भला बुरा कहते थक गए और चुप हो गए तो गौतम बुद्ध ने उन नगरवासियों से कहा- क्षमा चाहता हूँ लेकिन अगर आप लोगों की बातें खत्म हो गई हो तो मैं यहाँ से जाऊँ ?
यह सुनकर उनको भला बुरा कहने वाले लोग बहुत आश्चर्य चकित हुए। तभी वहाँ मौजूद लोगों में से एक ब्यक्ति बोला, हमलोग तुम्हारा गुणगान नही कर रहे है बल्कि तुम्हे बुरा कह रहे है। क्या इन बातों का तुम पर कोई असर नही हो रहा ?
उस ब्यक्ति को जबाब देते हुए गौतम बुद्ध ने कहा- आप सब चाहे मुझे कितनी भी गालियाँ दे या कितना भी बुरा कहें मैं इन्हें खुद पर नहीं लूँगा क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कुछ भी गलत नही कर रहा। चूंकि इन सब बातों को मैं स्वीकार नही कर रहा इसीलिए इनका मुझपर कोई असर नही हो रहा। गौतम बुद्ध ने आगे कहा कि जब मैं आपके इन गालियों और बुराईयों को लूँगा ही नही तो ये निश्चित तौर पर आपके पास ही रह जाएंगे। ये सुनकर उनके बिरोधी भी उनके तर्क के कायल हो गए और उनसे क्षमा याचना करने लगे।
आप भी अगर गलत नहीं है तो किसी के गलत और नकारात्मक टिप्पणी से विचलित न हो और न ही उन्हें खुद पर लें। अगर आप उसे खुद पर लेंगे और दुखी होंगे तो यही माना जायेगा कि अपने दुखों का कारण आप खुद हैं।
किशोरी रमण
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Very nice.
वाह, बहुत सुंदर अँड प्रेरणादायक कहानी |