कहते हैं कि पंच तो परमेश्वर होता है
उसका कोई शत्रु या मित्र नही होता
उनसे हम कैसे करें न्याय की उम्मीद
जिनमे न्याय करने का चरित्र नही होता
न्याय की किताब पढ़ने में भी यहां
गरीबों के साथ ना इंसाफी होता है
बेगुनाह तो बंद रहते हैं यहां जेलों में
बलात्कारियों को यहां माफी होता है
जब भी यहां फैसले की घड़ी आती है
कानून की व्याख्या पैसों से तुल जाती है
वर्षो बाद भी कही तो न्याय नहीं मिलता
कहीं रात में भी अदालतें खुल जाती है
गरीब अगर हक मांगेतो वह जेल जाता है
सिस्टम से सवालपर देशद्रोही कहलाता है
समर्थवान अपराध कर के भी बच जाते है
और न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाते है
कहने को तो लोकतंत्र में जनता मालिक है
संसाधनों के बटवारे में वह कहां शामिल है
यहां चंद लोग ही बांट लेते है सब कुछ
बजट और सियासत से इन्हे क्या हासिल है
किशोरी रमण
आप सब खुश रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें
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बहुत सुंदर रचना।