तुम चली गई हमे छोड़ ये भुला नहीं पाता हूं
याद कर अपना बचपन मैं आसूँ बहाता हूं
तुम्हारे आँचल के छांव में बीता था मेरा कल
अब तुम्हारे बिना खुद को लावारिस पाता हूं
आपकी ऊंगली पकड़ हमने चलना सीखा था
आपकी ममता ने मेरे तन मन को सींचा था
मुसीबतें आई तो आप चट्टान बन खड़ी रहीं
जब हम रोए तो हमे अपने बाहों में भींचा था
यूँ तो सबकुछ है जिंदगी में,कोई कमी नहीं है
कमी है तो बस इतना कि अब तू पास नहीं है
इस लायक तूने मुझको बनाया है मेरी माता
कि खुद समझ सकूं क्या गलत क्या सही है
अब किससे हम रूठेगेंअब कौन हमे मनाएगा
जब नींद नहीं आयेगी तो लोरी कौन सुनाएगा
तू नही तो कुछ भी नही, अब लौट आओ माँ
इस बेरहम दुनियां से अब कौन मुझे बचायेगा
किशोरी रमण
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