सत्य के महत्व को समझना जितना कठिन होता है उतना सरल भी। अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए जब ये बातें भगवान बुद्ध ने कही तो सभी शिष्यगण चौक गये। वे सब इस सोंच में पड़ गए कि एक ही साथ कठिन और सरल दोनो कैसे हो सकता है ? भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के मन की दुबिधा को ताड गये। उन्होनें सत्य के महत्व को समझाने के लिए एक कहानी अपने शिष्यों को सुनाई।
एक बृद्ध साधु रात्रि में अपने घर के बाहर बैठा था। तभी एक स्त्री सामने से गुजरी। बृद्ध साधु ने उस स्त्री को रोक कर प्रश्न किया- आप कौन हैं देवी और इस घोर रात्रि बेला में कहाँ जा रही हैं ?
वह स्त्री बोली- मैं लक्ष्मी हूँ और नगर को छोड़ कर जा रही हूँ।
ठीक है, जाओ। उस साधु ने बिना किसी चिंता फिक्र के कहा।
कुछ ही देर बाद उस स्थान से एक और स्त्री गाँव से बाहर जाती हुई दिखाई पड़ी। उस बृद्ध साधु ने पुनः उस स्त्री से प्रश्न किया - आप कौन है देवी और आप कहाँ जा रही है ?
वह स्त्री बोली- मैं कीर्ति हूँ और इस नगर को छोड़ कर जा रही हूँ ।
साधु ने निश्चिन्त होते हुए कहा- शौख से जाओ।
इसके बाद उस साधु ने एक पुरुष को आते हुए देखा तो उठ कर उसके सामने खड़ा हो गया और पुनः वही प्रश्न दुहराया।
वह पुरुष बोला - मैं सत्य हूँ और इस नगर को छोड़ कर जा रहा हूँ।
यह सुनकर वह बृद्ध साधु घबरा गया। उसने लपक कर उस सत्य के चरण पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए कहने लगा - नही भगवान, आप यहाँ से न जायें। आपके जाने के बाद तो यहाँ कुछ भी नही बचेगा। मैं आपको यहाँ से जाने नहीं दूँगा, भले ही मेरे प्राण निकल जाय।
बृद्ध साधु के अनुनय विनय पर सत्य ने उसी नगर में रुकने की स्वीकृति दे दी। साधु ने संतोष की सांस ली। कुछ ही क्षणों में उस साधु ने देखा कि लक्ष्मी और कीर्ति वापस नगर में आ रही हैं तो मुस्कुरा कर बोला- आप दोनों तो इस नगर को छोड़ कर चली गई थी, अब क्या हुआ ? यह सुनकर दोनो बोली, हे साधु महाराज, जहाँ पर सत्य है वहाँ से हम नही जा सकते। अब हमें यहीं रहना पड़ेगा।
कहानी सुना कर भगवान बुद्ध बोले- श्रेष्ठतम जीवन का आधार सत्य है। सत्य के बल पर ईश्वर है। सत्य में ईश्वरीय शक्तियाँ वास् करती हैं। जो व्यक्ति सत्य को धारण करता है वह ईश्वर तुल्य हो जाता है। परन्तु सत्य का मार्ग काँटो से भरा है।
किशोरी रमण
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wonderful...
सत्य ही ईश्वर है। जहाँ सत्य है वहां और सिर्फ वहाँ ही ईश्वर विराजते हैं।
बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना।